Pritam's writing मन्नतों से भी हाथों पे लिखे लकीरों को हम मिटा ना सके, जिनका मिलना रब को पसंद ही नहीं उनको चाह कर भी अपना बना ना सके। दिल में उनके बस गया था मै , मगर इस दिल को हम उनका बना ना सके। ख़्वाबों में तो जिंदगी को देखा था हमने, मगर चाह कर भी हम उनका साथ निभा ना सके। रातों के अंधेरे में ये महसूस होता था हमें, हमारा साथ जन्मों-जन्मों का है, उसी साथ को हम कुछ दिनों के बाद बचा ना सके। किस्मत तो मानता नहीं था मैं, इस घटना के बाद खुद को इससे दूर करवा ना सके। मन्नत तो आज भी करता हूं 1000 की मौका मिले जिंदगी में तो रब मुझे 1 बार उनसे तो मिलवा दे। मोहब्बत तो हमे उनसे बेशुमार हुई थी, दिल्लगी में भी हमारी ना कोई कमी  थी। ये रात गवाह है,  इश्क़ के मेरे, मगर परिवार वाले को हम समझा ना सके। कोई सपना नहीं हकीकत है ये, की अब हम साथ नहीं मगर इस दिल को इस बात से रूबरू करा ना सके। उस आखिरी मैसेज की बातें हम अपने मन से अभी तक हम भुला ना सके, जिसमे लिखा था last wish अब हम करें तो क्या करे और उसके बाद हम मैसेज को आगे बढ़ा ना सके। दुनिया के सामने हम हस तो रहे है, मगर इस दिल ही हाल उनको बता ना रहे। और प्यार तो बेशक बेशुमार है मेरा, मगर जिनका मिलना हमारे लकीरों में नहीं, उनको चाह कर भी अपना बना ना सके

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